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मै और मेरी तन्हाई !
Saturday, March 26, 2011
रात चुप है चाँद खामोश नही
रात चुप है चाँद खामोश नही
कैसे कहूँ आज फिर होश नही .
यूँ डूबा तेरी आखों में ,
हाथ में जाम है पीने का होश नही...
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रात चुप है चाँद खामोश नही
मुश्किल मैं है मेल प्रिये प्यार नही है खेल प्रिये....
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उनका आशियाना दिल में बसा रखा है
एक दोस्त की तलाश है मुझे
ऐसा दोस्त चाहिए
खुशी भी दोस्तो से है,
चलते रहना है हमको,
हर चहरे मे कुछ तोह एह्साह है,
रात चुप है चाँद खामोश नही
गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण
एक चादर में लिपटे दो बदन *
नई ताजगी
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