Sunday, April 17, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण


1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

२. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.

4. अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5. हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.

6. नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


7. भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8. सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस युग में 'कौन बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर बनाने का गब्बर का यह सच्चा प्रयास था.


9. महानायकों का निर्माता: अगर गब्बर नहीं होता तो जय और व??रू जैसे लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर के व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता जागी.

Saturday, March 26, 2011

उनका आशियाना दिल में बसा रखा है

 उनका  आशियाना  दिल  में  बसा  रखा  है 
 यादों  को  सीने  से  लगा  रखा  है ..
 याद  आते  है  वही  क्यों  दोस्त  
 हमने  औरों  को  भी  बना  रखा  है ....





रात चुप है चाँद खामोश नही

रात  चुप  है  चाँद  खामोश   नही
कैसे  कहूँ  आज  फिर  होश  नही . 
यूँ  डूबा  तेरी  आखों  में , 
हाथ  में  जाम  है पीने  का  होश  नही...


मुश्किल मैं है मेल प्रिये प्यार नही है खेल प्रिये.......

तुम नई विदेसी मिक्सी हो ओर मैं एक पत्थर का सिलबट्टा हु 
तुम ए के   ४७ जैसी और मैं एक देसी कट्टा हु
तुम मुक्त शेरनी जंगल की और मैं चिड़ियाघर का भालू हु
तुम व्यस्त सोनिया गाधी और मैं लालू सा खाली हु
कल अगर मुझे जेल हो जाये तुम करवाना बेल प्रिये
मुश्किल मैं है मेल प्रिये प्यार नही है खेल प्रिये ||||


मैं ढाबे का ढाचे जैसा तुम पांच सितारे होटल हो
मैं महुआ की देसी ठररी और  तुम अर्न्ग्रेजी बोतल की दारू हो
तुम सोनी मोबाइल और मैं टेलीफोन का चोंगा हो
तुम मछली मानसरोवर की और मैं सागर का घोंघा हु
पांच मंजिल ईमारत से गिर जाऊंगा मत आगे धकेल प्रिये
मुश्किल मैं है मेल प्रिये प्यार नही है खेल प्रिये ||||















Tuesday, February 15, 2011

नई ताजगी

हल्लो दोस्तों |
अभिलाशाओं को दुलारते पल
सपनों की दुनियां संवारते पल
शाम हुई तो फिर उम्मीद जगी
इंतजार में किस की आंख लगी
अपने ही घावों को सहला कर
अपने ही भावों को बहला कर
यादों के च्हिलके उतारते पल
शबनम से रातें निखारते पल
भोर हुई तो अंगडाई ले कर
बीती बातों को विराम दे कर
एक नई ताजगी लिए मन में
आने वाले दिन के आंगन में
गिरे हुए पत्ते बुहारते पल
रोज नए अंकुर निहारते पल ............

Wednesday, November 3, 2010

दीपावली की शुभ कामना

May the beauty Of deepawali season Fill your home with Happiness,And may the coming year Provide you with all That bring you joy!
with the beautifull poem ...

ज्योति का पर्व आकर खड़ा द्वार पर
चाँदनी आज फिर गीत गाने लगी
फूल की पांखुरी, गंध, मेंहदी लिये
देहरी अल्पना से सजाने लगी

थाम भेषज चषक आज धन्वन्तरि
सिन्धु से फिर निकल आ रहा गांव में
कर रहीं अनुसरण झांझियां बाँध कर
कुछ उमंगों को पायल बना पांव में
आज फिर हो हनन आसुरी सोच का
रूप उबटन लगा कर निखरने लगा
मुखकमल घिरता स्वर्णाभ,रजताभ से
सूर्य बन कर गगन पर दमकने लगा

उड़ते कर्पूर की गंध में कल्पना
आरती के दियों को सजाने लगी

बढ़ रहीं रश्मियाँ हर किसी ओर से
सारे संशय के कोहरे छँटे जा रहे
जो कुहासे थे बदरंग पथ में खड़े
एक के बाद इक इक घटे जा रहे
आस्था दीप की बातियों में ढली
और संकल्प घॄत में पिघलता हुआ
सत्य के बोध को मान सर्वोपरि
मन में निश्चय नया और बढ़ता हुआ

थालियाँ भर बताशे लिये कामना
हठरियाँ ज़िन्दगी की सजाने लगी

आओ आशा की लड़ियों की झालर बना
द्वार अपने ह्रदय के सजायें सभी
द्वेष की हर जलन, दीप की लौ बने
रागिनी प्रीत की गुनगुनायें सभी
अंधविश्वास, अज्ञान, धर्मान्धता
के असुरगण का फिर आज संहार हो
झिलमिलाता हुआ ज्योत्सना की तरह
हर तरफ़ प्यार हो और व्यवहार हो

एक आकाँक्षा साध में घुल रही
स्वप्न आँखों में नूतन रचाने लगी..

Wednesday, March 17, 2010

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