Tuesday, February 15, 2011

नई ताजगी

हल्लो दोस्तों |
अभिलाशाओं को दुलारते पल
सपनों की दुनियां संवारते पल
शाम हुई तो फिर उम्मीद जगी
इंतजार में किस की आंख लगी
अपने ही घावों को सहला कर
अपने ही भावों को बहला कर
यादों के च्हिलके उतारते पल
शबनम से रातें निखारते पल
भोर हुई तो अंगडाई ले कर
बीती बातों को विराम दे कर
एक नई ताजगी लिए मन में
आने वाले दिन के आंगन में
गिरे हुए पत्ते बुहारते पल
रोज नए अंकुर निहारते पल ............